फ्रांस में निशाने पर मुसलमान?
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन ने देश के नाम संदेश दिया. अर्दोआन ने तुर्की के लोगों से अपील की कि वो फ्रांस में बने सामान का बहिष्कार करें.
अर्दोआन का ये संदेश टीवी पर प्रसारित हुआ और इसका असर कहीं आगे तक दिखा.
तुर्की की ही तरह कुवैत, जॉर्डन और क़तर की दुकानों से फ्रांस में बने सामान हटा दिए गए. इसी दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों पर आरोप लगाया कि वो इस्लाम पर हमला कर रहे हैं. बांग्लादेश, इराक़ और लीबिया से लेकर सीरिया तक फ्रांस के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए.
इस विरोध की वजह फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के वो भाषण और इंटरव्यू थे, जो उन्होंने सैमुअल पेटी नाम के शिक्षक का सर कलम किए जाने के बाद दिए थे. सैमुअल ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी एक क्लास में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाए थे.
बहुनस्लीय समाज को एकजुट रखने के मुद्दे पर मैक्रों ने कहा कि फ्रांस में राज्य यानी शासन व्यवस्था धर्म निरपेक्ष है और यही खूबी विविधता भरे समाज को एकजुट रखती है. फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता के इस सिद्धांत को कहा जाता है 'लैसीते.'
कई आलोचकों की राय है कि फ्रांस ने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को मुसलमानों पर हमला करने का हथियार बना लिया है.
क्या है धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत?
क्या वाकई ऐसा है, इस सवाल पर ब्रिटेन की बाथ यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के लेक्चरर ऑएलियां मॉन्डों कहते हैं कि सबसे पहले ये समझना होगा कि 'लैसीते' है क्या?
ऑएलियां मॉन्डों के मुताबिक, "कुछ लोग इसे धर्मनिरपेक्षता कहते हैं, लेकिन ये धर्मनिरपेक्षता से कुछ अलग है. फ्रांस के इतिहास में इसकी ख़ास जगह है. फ्रांस की राष्ट्रीय पहचान और फ्रांस के नागरिक ख़ुद को जिस तरह देखते हैं, उसमें इसकी ख़ास भूमिका है."
लैसीते फ्रांस में धर्म निरपेक्षता का एक रूप है. इसका लगातार विकास राज्य यानी शासन व्यवस्था को चर्च के प्रभाव से दूर करने की कोशिश के दौरान हुआ है. इसकी जड़ें इतिहास में बहुत पीछे तक जाती हैं लेकिन इसका बड़ा असर 18वीं शताब्दी में दिखता है.
ऑएलियां मॉन्डों याद दिलाते हैं कि साल 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के दौरान राज्य और चर्च के बीच सीधे टकराव की स्थिति बन गई.
ऑएलियां मॉन्डों बताते हैं, "जब फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत हुई तब चर्च के पास काफी ताक़त थी. क्रांति के दौरान चर्च की भूमिका कमतर करने की कोशिश हुई. इसके बाद ही फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता को लेकर बहस शुरु हुई. हालांकि, ये सब बहुत लंबे वक़्त तक नहीं चला. पहले उदारवादी सरकार आई और फिर नेपोलियन ने सत्ता संभाल ली. नेपोलियन ने पोप और चर्च के साथ समझौता कर लिया. इसके बाद कुछ वक्त के लिए धर्मनिरपेक्षता की बातें भुला दी गईं."
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